बुधवार, 6 जुलाई 2011

sagar sa gmbhir?

{{{{{{ सागर सा गंभीर  ?}}}}}}
वाह रे सागर तूने ,कितना सहा है, 
कितना और तू सहेगा?
ज्वार भाटे से तूफ़ान उठते?
लहरें तरंगेंवेगा सी उठती ?
फिर भी शांत शालीनता ,
फिर मंद मंद  उसाँसे  लेता?
 कितने ही जीवन,
इस रंग में पलते ,
कितने ही मिट जाते?
फिर भी तू शांत रहा करता?
कितने ही नश्तर, तेरे ह्रदय में चुभते ?
कितनी पीड़ा तेरे उदर में होती,
फिर भी चुपचाप सहता?अंतर  विद्रोह कब तक,
तेरे मानस पटल पे और  नही बहेगा?
तेरे गर्भ गृह  में लाखों जीव हैं पलते?
लाखो करोड़ों का तू पोषक है ?
तेरे गर्भ में कितने ही खजाने छिपे हैं?
मानव कितना दोहन शोषण तेरा करता?
फिर भी तू उफ़ नही करता?
तेरा जेसा सहन शील ,मेने ,
आज तक न देखा ,न शायद देख सकूंगा ?
तेरी मुस्कानों में कितनी लहरें कितनी तरंगे हैं  ?
खनिज सम्पदा के अपूर्व  भंडार है,
  अथाह  जल सम्पदा, तेरी कहते है?
प्रथ्वी का तिन चोथाई  भाग समंदर है ?
लेकिन तुझको ना किसीने मान दिया?
तू सबको कुछ ना कुछ देता रहता?
फिर भी सबने तेरा ही अपमान किया
जल प्रदूषित करने अपनी  गंदगी  तुझमे डालें ?
परमाणु हायड्रोजन बोम,
तेरे ही उदर में फोड़ तुझे आक्रोशित कर सांझे?
निर्मोही  तेरी पीड़ा को समझे?
मानव सा जहरीला मतलबी ,
धरा पे शायद कोई नही है?

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