शुक्रवार, 1 जुलाई 2011

anterdadnd/

******मानसिक आन्दोलन ?******
छिछला मन छिछली बातें ,उल्ट पुलट रहा तन मन की परतें?
वेभवता की भव्य अकुलाहट ,बिसरी बातों की धुंधली तस्वीरें?
तिनके ने तिनके को जला दिया,अपनों ने अपनों संग दगा किया  ?
उल्फत ने बरपा लहू, समंदर तक उसमें डूबा दिया
बीती यादों के सिहरे पल ,हंसते मुस्कराते जीवन को छल कपट से विदा किया?
सब देख रहे थे हाथों को मल- मल, कितना सुनहरा था बीता कल ?
निर्मोही आंसुओं से भीगा दामन,कियूं खामोश होगया कुछ तो बोल?
बीरान सा लगता मंजर कियु मायूसी छाई रहती पलपल / 


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें