शनिवार, 2 जुलाई 2011

prakratikimaya?

\\\\\\\\\\\\प्रकृति  की माया?\\\\\\\\\\
सूना सूना आँगन  मेरा दिया दूर टिमटिमाता रहा
दूर वहुत दूर  ध्वनिअंश ,निशाचर हमको बुलाता रहा?
मंद मंद भीनी- भीनी सी हल्की हल्की ,
महकी महकी शिरी शिरी हवा हिलोरें लेती,
पवन मुस्काती झोंके लेती तारों का झुण्ड ,
जेसे सांसदों की सभा हो रही ,
सप्त तारे मंत्री मंडल,
प्रधान चन्द्र राज,सभा के अध्यक्ष ,
 प्रकृति की माया सुशोभित हो रही ,
सब काम सिलसिले बार ,
सुनाती हमे सुगंध  बहाती  फूलों की रानी है?
जो खिल जाते , खिल  खिल के अपनी खुशबु
बहाते, बहाते बिखर जाते हैं ?
मुरझाया फूल फिर कभी नही खिलता?
अनंत में विलीन हो जाते हैं ?
निर्मोही आता इंसान जाता इंसान 
कोई भी नही यहाँ पे अमर इंसान ?