बुधवार, 6 जुलाई 2011

narendra nirmohi: sagar sa gmbhir?

narendra nirmohi: sagar sa gmbhir?: "{{{{{{ सागर सा गंभीर ?}}}}}} वाह रे सागर तूने ,कितना सहा है, कितना और तू सहेगा? ज्वार भाटे से तूफ़ान उठते? लहरें तरंगेंवेगा सी उठ..."

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