गुरुवार, 21 जुलाई 2011

pralay?

||||||||||||||प्रलय ||||||||||
खोज रहीं थीं अपने प्रियों को ,
कुटिल  अनतपुर की विषधर चालें ?
क्या उनका गुरुर था ,
मद में डूबा,पल में टुटा ,
सोचरहे थे अहंम उन्नत विचार,

हिम शिलाएं क्षण  क्षण  टूटीं ;
प्रलय  का जाल विछ रहा,
आकाश तल से उल्काएं छूटीं,
धरा भू-मंडल ले जेसे पाताल में जा डूबी, 
सूर्य का मानों कहाँ जा छुपा था,
चारों ओर अंधकार घना पड़ा था,
प्रकाशपुंज फेलाने बाले का अहंम,
लगता था प्रलय ने लुटा था ,
जग को प्रकाशित  बिना बाधा के  करता रहेगा
सपना द्रर्ड़ता  का ,गुरुर काफूर हुआ था
चिर निद्रा  में डूबा उसका प्रकाश ,
आसमान फटा विनाश लीलाओं का,
तूफानी वेगवती अंधड़ का समा बना  था,
कब जाने किस पल क्या हो जाये? कोन जनता ?
आकश फट फट बिजली कडक कडक,
समंदर  का ह्रदय छलनी कर रही ?
मिट सा गया था धरा का वजूद ,
इतने बड़े पैमाने क्रूर  हत्याएं, खून सने लोथड़े,
यहाँ वहां आकाश  में  मडरा रहे  थे ,
जीव जानवर कागजों पन्नियों  से उड़ रहे थे,
ज्वालामुखी समूह जगह जगह फट रहे थे 
गगन चुमता लावा?भीषण विस्फोट,
ब्रहंमांड  को भयभीत किये थे ,
हर और धूम धड़ाके म्रत्यु का क्रंदन ,
सभी का स्वरुप धरा शाही,
हर जीव सजीव निर्जीव जेसे,
विनाश के लिए ही बना है?
शिवजी का मानों तीसरा नृत्य खुल गया,
समंदर के ज्वारभाटों कोआकाश संग,
मिलने का आदेश मिल गया था ?
भीषण जल पात  ,न व् पात,उल्का पात हो रहे ,
वो  निर्मोही विनाश विनाश विनाश  आखिर कियूं कर रहा?
विनाश के बाद फिर सर्जन  होता?