शुक्रवार, 1 जुलाई 2011

kli ki klpna?

         कली की कल्पना ?
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खिलती कली ने सोचा ,
मै फूल बनूगी न्यारा 
माली मुझे तोड़ेगा 
किसी के गले का हार बनूगीं, 
प्यारा प्यारा जुल्फों में कभी किसीके 
गजरे में कभी किसी के ,
गुलदानों में लग मुस्कुराऊँगी
मेरी महक सरे घर मे फेलेगी
में खुद अपनी ख़ुशी से इतराऊँगी 
सुहाग सेज मुझसे ही सजेगी 
मै पलपल अपने को गोरान्वित कर,
अहंम से फूली नही समांऊगी
कभी भगवान के गले का हार बनूगी
कभी प्रभु के चरणों मे,
कभी पुण्यआत्माओं की,
अर्थी पे पे चढ़ जाऊँगी!
कभी बागों  मे खुशबु से च हकुंगी ,
 कभी नेताओ के गले मे स्वागत  मे पड़ जाऊंगी
कभी शादी की, वरमाला मे, मुख्य भूमिका निभा ऊँगी
हम इंसानों  को इतना करते पर सोचती हूँ ,
जो हम मुरझा जायेंगे? एक पल किसीको न भाएंगे?
सब मेरा त्याग एक एक कर विसराएंगे  ?
मतलबी ,मानव, स्वार्थी हमे ,
कूड़े -कचरे मे फेंक कर मुस्करायेंगे  ?
ये हम भी सोचते ?
जो आता है सो ऐसे ही जाता है?
वक्त वही करता जो उसे सुहाता है?
बागों मे भी होती तो फूल बन खिल जाती,
फिर खिल के, विखर जाती?
सारे चमन मे खुश्बू बिखेरती  ,
फिर एक एक  कर झड़ जाती हैं?
जवानी से प्यार,बुढ़ापा बेजार ,
बंजर बन सामने आता है?
संतोष हमे बस होता ,
यही मानव भी रोना रोता है? 
वचपन प्यारा ,जवानी मस्तानी,
बुढापे  मे होती खीचातानी? 
मरने पे  देह जला दी जाती ,
संसार चक्र भी विचित्र है बनाया, परमात्मा ने,
कोई समय से पहले ,कोई समय के बाद भी ,
कब्र मे पैर लटकाए लटकाए भी ,
दुनिया से नही खिसकता है?
कोई जनम से पहले काल का दास बन जाता ,
कोई गर्भकाल मे ही दम तोड़ भाग निकलता है?
निर्मोही हर कोई दुनिया मे अकेला आता,
और अकेला ही चला जाता , 
फिर भीइंसान कितने  ढोंग धतूरे करता है 
न कुछ लाता ना कुछ ले जाता, फिर भी सामान,
१००, १०००,१००००, १०००००साल के लिए ,
इकठ्ठा  करता रहता त्रसना लिए पैदा होता ,
त्रसना लिए लिए ही मरता है ?                  


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