गुरुवार, 30 जून 2011

jina to pdega ?

जीना तो पड़ेगा?
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जीना  तो  पड़ेगा मुझको?
मरने से बोलो होगा भी क्या?
कर्मभूमि है धरा ,
धरा पे  है जीवन ,
जीवन जीने से पछताना ना ?
मौत तो एक दिन सबको आनी?
मौत से कैसा  घबराना ?
मौत नही हैदुश्मन किसी की भी?
उसे बैरी समझ दूर भाग जाना न ?
ये चोला काया का बोझ ढ़ो नही पाता,
शरीर जर जर बेबस हो जाता या ,
कर्म करते करते करम प्रमुख बन जाता,
उन्नतियाँ मर्म ,मानस को ,
आध्यत्म की सर्वोच्च सीढियाँ,
छूते छूते ऊँची ऊँची होती जाती  ?
बूंद समंदर की समंदर में मिलने लालायित होती ?
स्वर्ग बालों को धरती मानव की ऊच्चाईयां  देख,
मिलने की जरूरत होती ?
मानव की प्रभु से मिलने की इच्छा,
जब प्रवल होती ,भक्त  भगवान एक लय बन जाती ?
नरलोक से मुक्ति की कथा ईश्वर के दुआर  ही गढ़ी जाती?
जीवन मरन जीवन म्रत्यु  एक ही सिक्के के दो पहलू हैं?
निर्मोही अब मरने से होगा भी क्या?
कर्म का ज्ञान  देते प्रभु?
करम छोड़ भाग जाना ना?

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