गुरुवार, 30 जून 2011

PRAKRATI?

             प्रकृति ?
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नीले नीले व्योम में,
हल्की हल्की यह रुई सी सफेदी
धुयें धुयें से ये उड़ते उड़ते बादल,
रेगिस्तान में ऊँटों के काफिले ,
शेर ,हाथियों के झुण्ड,
बहते हुए पहाड़ोंकी चोटियों से ,
गिरते विशाल जल  राशि के पुंज 
प्यारे प्यारे सेकंडों में चित्र उभरते
पल में बनते पल में मिट जाते? 
बादल घनघोर उमड़ते घुमड़ते
  बूंद दो बूंद  भी नही बरसते?
  कभी सूरज को ढँक लेते ,
कभी घनघोर  अधेरा कर  
सूरज को अंक में भर 
चुम्बन पे चुम्बन कर,
डूबते  दिवाकरके गालों को लाल कर ,
सारी दिशा  में लालिमा भर देते 
कभी रेखांकित समांतर  क्रीडा करते शिशु ,
कभी हिरणों के स्वछन्द उछंल खल,
क्ल्किलोरी   करते झुण्ड,
कभी विचरण  हुए झुंडों के  काफिले  , 
कभी युगल प्रेमी मिलन ?
कहीं फुदकते  फुदकते खरगोशों की टोलीयां ? 
पकृति की अनुपम झांकियां ,हर पल बनती हर पल मिटतीं? 
इन्हें रचने वाला रचनाकार कहाँ है?
तुलिका का जादूगर,
जादूगरी दिखने बाला सरदार कहाँ है?
बादलों के आकार प्रकार क्या मनुष्यों की हार नही है?
मानव वर्षों परिश्रम  कर जो बनाता है,
वो पल में बनाता पल में मिटाता है?
निर्मोही वैज्ञानिक दार्शनिक ,
आध्यात्म बाले भीउससे  हार गये ?
उसकी लाठी में आबाज़ नही ?
उससे कोई क्या  जीत सका है,?
सब खोज, खोज करते, उसके पास गये?        

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