मन हर्दय आत्मा पुरुस्कृत
चंमत्कृत रहे यह संसार
आता आदमी जाता आदमी
छोड़ जाता जग पे सब उधार
न कुछ लाता न ही कुछ ले जाता?
फिर भी त्रसना का आदमी,
लिए फिरता संसार ?सच्चा गुरु ,
जहाँ में कोई नही यह है कलियुगी संसार ?
इस्वेर ही चिरन्तन सत्य है
सच्ची भक्ति आत्म तत्व की,
जो लगती भवसागर से पार
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